Gunjan Kamal

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याद नही होता था

मेरी सच्ची साथी! बहुत सारे ऐसे लोग होंगे जिन्हें बचपन में कुछ ऐसी चीजें होगी जो याद नहीं होती रही होंगी इसलिए तुम यह मत समझना कि मैं ही एक ऐसी इकलौती थी जिसे याद नहीं होता था। अब तुम पूछोगी कि क्या याद नहीं होता था? बताती हूॅं...  बताती हूॅं.... थोड़ा सब्र तो करो क्योंकि हर किसी को सब्र तो रखना ही चाहिए।

मेरी सच्ची साथी! तुम यह जानकर मुझ पर हंसोगी कि मुझे दूसरी क्लास में आ जाने के बाद भी पहाड़ा मतलब  अब इसे टेबल कहा जाता है। हमारे बच्चे भी  इसे टेबल ही कहते हैं। हां ! यह पहाड़ा ही था  जो मुझे याद नहीं रहता था। उस स्कूल में छुट्टी होने से दो पीरियड पहले की क्लास सिर्फ पहाड़ा याद करवाने में ही बीतती थी। कतार में बैठे हुए बच्चे एक-एक करके उठते थे और सर के पास जाकर खड़े हो जाते।  सर के पास खड़ा बच्चा पहले पहाड़ा पढ़ना शुरू करता था उसके पीछे- पीछे बाकी बच्चे भी उस पहाड़ा को बोलते थे। यह क्रम लगभग रोज ही चलता था।

मेरी सच्ची साथी! पीछे - पीछे बोलने वाले बच्चों तक जब मैं शामिल रहती थी तब तक तो ठीक रहता था लेकिन जब मुझे सर के पास जाकर पहले बोलना होता था तो मैं अक्सर कुछ ना कुछ गलतियां कर ही देती थी और फिर कुछ ऐसे लड़के थे जो शरारती थे, वें खी ... खी.. करके हंसने लगते थे। उन्हें देखकर मुझे शर्म के साथ-साथ बहुत गुस्सा भी आता था। क्या करूं? बच्चे की उम्र थी उस वक्त दिमाग में बात आती ही नहीं थी कि मेरी जो कमी है उसे मैं दूर करूं। दिमाग में तो यह आता था कि यें बच्चे मुझ पर क्यों हंस रहे हैं?  उन्हें मुझ पर हंसना नहीं चाहिए क्योंकि उन्हें भी तो गलतियां होती थी लेकिन मैं तो उन पर नहीं हंसती थी।

मेरी सच्ची साथी! मेरा शुरू से यह मानना रहा था कि जो चीज में दूसरे के साथ नहीं करती मेरे साथ भी  उसे वह चीज करने का अधिकार नहीं है। भले ही हम दूसरों के साथ वह चीज ना करें लेकिन यह जरूरी तो नहीं कि जो चीज हम उसके साथ नहीं कर रहे है  वह हमारे साथ ना करें लेकिन यह बात उस छोटी उम्र में कहां समझ में आती थी? संयुक्त परिवार था हमारा। मां भी 10:00 से 4:00 के बीच में इतनी थक जाती थी कि मुझे पढ़ा नहीं पाती थी। स्कूल में ही जो पढ़ाया सो पढ़ाया, वो भी अपनी कक्षा में।

मेरी सच्ची साथी!  मेरी मां उसी स्कूल में हिंदी की अध्यापिका थी वह सभी कक्षा में हिंदी पढ़ाती थी। आज जो तुम हिंदी में मेरे सही उच्चारण और शुद्धि देख रही हो वह मेरी मां की बदौलत ही है। आज मेरी हिंदी यदि अच्छी है तो इसमें मेरी मां की मेहनत सबसे पहले मैं देखती हूॅं। हां तो मैं  पहाड़ा नहीं याद होता था, उसके विषय में बात कर रही थी। क्या करूं कोशिश तो करती थी लेकिन कुछ ना कुछ गलतियां हो ही जाती थी। मेरी उन गलतियों को स्कूल के किस अध्यापक ने सही किया और छः महीने के अंदर ही मुझे पहाड़ा पढ़ने में इतना पारंगत कर दिया कि बीच से भी अगर यदि कोई पहाड़ा पूछता था तो मुझे उसके जवाब देने में सेकंड भर का भी समय नहीं लगता था उस अध्यापक के बारे में जब मैं अगली बार तुमसे मिलूंगी, बातें करूंगी। अभी के लिए मुझे जाने की इजाजत दो, चलती हूॅं! जल्द ही फिर से मुलाकात होगी।


      🙏🏻🙏🏻बाय बाय 🙏🏻🙏🏻


गुॅंजन कमल 💗💞💗


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7 Comments

Radhika

09-Mar-2023 01:46 PM

Nice

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अदिति झा

03-Feb-2023 01:22 PM

👏👌

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